हड़ताल किसी चीज का समाधान नहीं : इलाहाबाद उच्च न्यायालय

राष्ट्रीय
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प्रयागराज, 14 सितंबर (ए) हापुड़ के अदालत परिसर में अधिवक्ताओं पर लाठीचार्ज की घटना के विरोध में वकीलों की हड़ताल पर चिंता व्यक्त करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि यह हड़ताल इसका समाधान नहीं है।.

अदालत ने कहा, “इसका समाधान यह हो सकता था कि अदालतें चलने दें ताकि अधिकारियों एवं नौकरशाहों को अदालतों में हाजिर होने के लिए बाध्य किया जा सके और उनकी जवाबदेही तय हो जिससे वे लाठीचार्ज की कार्रवाई को उचित ठहराएं। ना कि अदालतें बंद कर दोषी अधिकारियों को स्वतंत्र रूप से घूमने दें और इस विश्वास के साथ मुस्कुराने दें कि उनसे स्पष्टीकरण मांगने वाला या उनके खिलाफ कार्रवाई करने वाला कोई नहीं है।”.न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेन्द्र ने यह टिप्पणी उस समय की जब बृहस्पतिवार को प्रभात कुमार एवं अन्य के मामले में कोई भी वकील हड़ताल की वजह से ना तो भौतिक रूप से और ना ही ऑनलाइन माध्यम से पेश हुआ।

पिछले 15 दिनों से जारी हड़ताल के दुष्प्रभावों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए अदालत ने कहा, “यदि अदालतें लंबे समय तक बंद रहती हैं तो लोग अपनी शिकायतों के निस्तारण के लिए दूसरे रास्ते अपना सकते हैं।”

अदालत ने कहा,‘‘उदाहरण के तौर पर जिन लोगों की कानून में आस्था नहीं है वे अपने विवादों को दूर करने के लिए अपराधियों से संपर्क कर सकते हैं या खुद अपराधी बन सकते हैं या फिर काम करवाने के लिए भ्रष्ट अधिकारियों को घूस देने जैसे अन्य उपाय अपना सकते हैं।”

अदालत ने कहा, “यदि यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहती है तो इसका समाज, लोगों और पूरे राष्ट्र पर ऐसा प्रभाव पड़ेगा जिसका आकलन नहीं किया जा सकता। ऐसी स्थिति में हमें संविधान और इसकी आत्मा से जो विश्वास प्राप्त है, वह टूट जाएगा और वह दिन हम सभी के लिए सबसे दुर्भाग्यपूर्ण दिन होगा।”

न्यायिक मंचों में ‘श्रमिक संगठनों’ जैसी व्यवस्था अपनाए जाने पर दुख व्यक्त करते हुए अदालत ने कहा, “न्याय के संस्थानों और अदालतों की तुलना औद्योगिक प्रतिष्ठानों से नहीं की जा सकती जहां औद्योगिक श्रमिकों द्वारा नियोक्ताओं से अपनी मांगे पूरी कराने के उद्देश्य से हड़ताल को उचित ठहराने की अवधारणा का उपयोग किया जाता है।”

अदालत ने आगे कहा, “ना ही राज्य विधिज्ञ परिषद और ना बार एसोसिएशन को श्रमिक संगठन की तरह माना जा सकता है। इनके पास किसी भी समस्या का हल निकालने के लिए सभी कानूनी साधन मौजूद हैं। वकीलों की हड़ताल से ना केवल न्यायिक समय बर्बाद होता है, बल्कि सामाजिक मूल्यों को जबरदस्त नुकसान पहुंचता है जिससे लंबित मामलों की संख्या बढ़ती है और वादकारियों के लिए मुश्किलें पैदा होती हैं जिनके लिए अदालतें काम करती हैं