ज्ञानवापी परिसर में मुसलमानों का प्रवेश बंद करने की मांग के मामले पर होगी सुनवाई

उत्तर प्रदेश वाराणसी
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वाराणसी (उत्तर प्रदेश), 17 नवंबर (ए) वाराणसी की फास्ट ट्रैक अदालत ने ज्ञानवापी परिसर में मुसलमानों के प्रवेश पर पाबंदी लगाने और मस्जिद के वजू खाने में मिले कथित शिवलिंग की पूजा पाठ की अनुमति देने के आग्रह वाली याचिका को बृहस्पतिवार को सुनवाई योग्य मानते हुए मुस्लिम पक्ष की आपत्ति खारिज कर दी।.सिविल जज सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक कोर्ट महेंद्र कुमार पांडेय की अदालत ने किरन सिंह की याचिका को सुनवाई योग्य माना है। अब इस पर सुनवाई दो दिसंबर को होगी।

इस मामले में बीते 15 अक्तूबर को ही अदालत में दोनों पक्षों की दलीलें पूरी हो गई थीं। तभी से आदेश में पत्रावली लंबित थी। इस प्रकरण में वादिनी किरन सिंह की तरफ से मुस्लिमों का प्रवेश वर्जित करने, परिसर हिंदुओं को सौंपने और शिवलिंग की पूजा पाठ राग भोग की अनुमति मांगी गई थी। अब इस मामले को कोर्ट ने सुनवाई योग्य माना है।

हिंदू पक्ष के वकील अनुपम द्विवेदी ने बताया कि ज्ञानवापी मस्जिद मामले में वाराणसी कोर्ट ने मुकदमे की पोषणीयता को चुनौती देने वाली मस्जिद समिति द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया है। मामले की अगली सुनवाई दो दिसंबर को होगी।

 किरन सिंह के अधिवक्ताओं ने दलील में कहा था कि वाद सुनवाई योग्य है या नहीं, इस मुद्दे पर अंजुमन इंतजामिया की तरफ से जो आपत्ति उठाई गई है, वह साक्ष्य व ट्रायल का विषय है। ज्ञानवापी का गुंबद छोड़कर सब कुछ मंदिर का है जब ट्रायल होगा तभी पता चलेगा कि वह मस्जिद है या मंदिर।  दीन मोहम्मद के फैसले के जिक्र पर कहा कि कोई हिंदू पक्षकार उस मुकदमे में नहीं था इसलिए हिंदू पक्ष पर लागू नहीं होता है। यह भी दलील दी कि विशेष धर्म स्थल विधेयक 1991 इस वाद में प्रभावी नहीं है। स्ट्रक्चर का पता नहीं कि मंदिर है या मस्जिद। जिसके ट्रायल का अधिकार सिविल कोर्ट को है।

कहा कि यह ऐतिहासिक तथ्य है कि औरंगजेब ने मंदिर तोड़ने और मस्जिद बनवाने का आदेश दिया था। वक्फ एक्ट हिन्दू पक्ष पर लागू नहीं होता है।  ऐसे में यह वाद सुनवाई योग्य है और अन्जुमन की तरफ से पोषणीयता के बिंदु पर दिया गया आवेदन खारिज होने योग्य है। 

हिंदू पक्ष के अधिवक्ताओं ने दलीलें रखी थी कि राइट टू प्रॉपर्टी के तहत देवता को अपनी प्रॉपर्टी पाने का मौलिक अधिकार है। ऐसे में नाबालिग होने के कारण वाद मित्र के जरिये यह वाद दाखिल किया गया है। भगवान की प्रॉपर्टी है, तब माइनर मानते हुए वाद मित्र के जरिये क्लेम किया जा सकता है। स्वीकृति से मालिकाना हक हासिल नहीं होता है। यह बताना पड़ेगा कि संपत्ति कहां से और कैसे मिली। अदालत में वाद के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट की 6 रूलिंग और संविधान का हवाला भी दिया गया।