घर जैसे निजी स्थान पर अन्याय को लेकर कोई संवैधानिक रिक्तता नहीं: प्रधान न्यायाधीश

राष्ट्रीय
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बेंगलुरु,17 दिसंबर (ए)प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने रविवार को कहा कि घर उसके निवासियों को निजी सुरक्षित स्थान प्रदान करते हैं, लेकिन जरूरी नहीं है कि उसमें रहने वाले सभी लोगों के साथ समान व्यवहार होता हो।

प्रधान न्यायाधीश ने ‘सरकार की संवैधानिक अनिवार्यता, सार्वजनिक और निजी स्थानों में भेदभाव को कम करना’ विषय पर व्याख्यान में रेखांकित किया कि निजी जीवन में सुधार का लाभ सार्वजनिक जीवन को भी मिलेगा। उन्होंने कहा कि घर जैसे निजी स्थान पर अन्याय के मामले में कोई संवैधानिक रिक्तता नहीं है।न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ यहां ‘नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी’, बेंगलुरु द्वारा आयोजित न्यायमूर्ति ई एस वेंकटरमैया शताब्दी स्मृति व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे।

प्रधान न्यायाधीश के अनुसार, भारत में अदालतों ने अतीत में व्यक्ति के ऊपर विवाह संस्था को विशेषाधिकार दिया है। उन्होंने कहा कि अदालतों को यह सोच विरासत में मिली है कि संस्थाओं को संरक्षित करने की आवश्यकता व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करने की आवश्यकता से अधिक है।

उन्होंने कहा कि घरों को निजता के संवेदनशील स्थान के रूप में सुरक्षित क्षेत्र माना जाता है, जो संवैधानिक कानून के मूल सिद्धांतों के अमल से मुक्त है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘पूरी निष्पक्षता से, व्यक्तियों के निजी जीवन को सुरक्षित रखने की यह प्रवृत्ति अच्छी तरह से स्थापित है, भले ही हम असहमत हों। आखिरकार, निजता व्यक्तित्व और गरिमा का विस्तार मात्र है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह एक ऐसा अधिकार है जो सार्वजनिक और निजी प्राधिकारों की ज्यादतियों पर, सरकार और सरकार के इतर तत्वों द्वारा व्यक्ति के जीवन में अत्यधिक घुसपैठ के खिलाफ गारंटी देता है। यह निगरानी और अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध के खिलाफ प्रभावी अवरोध प्रदान करता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मैं खुद से पूछता हूं, घर की इस दहलीज पर कानून रोकने में क्या हर्ज है? इसका जवाब इस तथ्य में निहित है कि घर जितना भी अपने निवासियों को एक निजी सुरक्षित स्थान प्रदान करे, लेकिन केवल इसी तथ्य से यह एक न्यायसंगत स्थान नहीं हो जाता।’’

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने उल्लेख किया कि घरों में सुरक्षा की सामान्य भावना के बावजूद इस बात की काफी संभावना है कि ये स्थान कुछ लोगों के लिए गैरबराबरी के और अनुचित हो सकते हैं।

उन्होंने कहा कि यह सुनना असामान्य नहीं है कि जब एक लड़के और एक लड़की की शिक्षा के बीच वित्तीय विकल्प को चुनने का सामना करना पड़ता है, तो परिवार लड़के के पक्ष में चयन करेगा।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हमारे निजी जीवन में सुधार के लाभ हमारे सार्वजनिक जीवन में भी दिखाई देंगे। जैसे-जैसे हमने यह समझना शुरू किया कि ये निजी स्थान भी संविधान के दायरे में है और निजी स्थानों में अन्याय भी वास्तव में अन्याय है, हम समाज में उनकी भूमिका का बेहतर आकलन करने में सक्षम हुए।’’

महिलाओं को कार्यस्थल पर भी भेदभाव का सामना करना पड़ता है, यह उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि लैंगिक आधार पर वेतन विसंगति और भारतीय महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव को दूर करने के प्रयास किए जाने चाहिए।उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वकालत में न केवल लैंगिक आधार पर संवेदनशील नीतियां शामिल होनी चाहिए, बल्कि ऐसी पहल भी शामिल होनी चाहिए जो महिलाओं के सामने आने वाली अनूठी चुनौतियों को चिह्नित करें और सुधारें।