हल्द्वानी में अतिक्रमण हटाने के उत्तराखंड उच्च न्यायालय के निर्देश पर उच्चतम न्यायालय की रोक

राष्ट्रीय
Spread the love

नयी दिल्ली, पांच जनवरी (ए) उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे की दावे वाली 29 एकड़ जमीन से अतिक्रमण हटाने के उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश पर बृहस्पतिवार को रोक लगा दी।.

न्यायालय ने इसे ‘‘मानवीय मुद्दा’’ बताते हुए कहा कि 50,000 लोगों को रातोंरात नहीं हटाया जा सकता।.

उच्चतम न्यायालय ने साथ ही रेलवे तथा उत्तराखंड सरकार से हल्द्वानी में अतिक्रमण हटाने के उच्च न्यायालय के आदेश के ख़िलाफ़ दायर याचिकाओं पर जवाब मांगा।

रेलवे के मुताबिक, उसकी 29 एकड़ से अधिक भूमि पर 4,365 अतिक्रमण हैं। न्यायमूर्ति एस के कौल और न्यायमूर्ति ए एस ओका की पीठ ने कहा कि यह एक ‘‘मानवीय मुद्दा’’ है और कोई यथोचित समाधान निकालने की ज़रूरत है। इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने मामले की अगली सुनवाई सात फ़रवरी को नियत कर दी।

उच्च न्यायालय ने 20 दिसंबर को एक सप्ताह का अग्रिम नोटिस जारी कर हल्द्वानी के बनभूलपुरा में रेलवे की भूमि पर हुए अतिक्रमण को हटाने का आदेश दिया था। इस पर विरोध जताते हुए हल्द्वानी के कुछ निवासियों ने उच्चतम न्यायालय का रुख किया था। निवासियों ने अपनी याचिका में दलील दी कि उच्च न्यायालय ने इस तथ्य से अवगत होने के बावजूद विवादित आदेश पारित करने में गंभीर भूल की है कि याचिकाकर्ताओं सहित निवासियों को लेकर कुछ कार्यवाही ज़िला मजिस्ट्रेट के समक्ष लंबित है।

बनभूलपुरा में रेलवे की कथित तौर पर अतिक्रमित 29 एकड़ से अधिक ज़मीन पर धार्मिक स्थल, स्कूल, कारोबारी प्रतिष्ठान और आवास हैं।

ज्ञात हो कि उत्तराखंड के हल्द्वानी क्षेत्र के बनभूलपुरा इलाके की तक़रीबन 50 हज़ार आबादी पिछले साल 20 दिसंबर 2022 को आए नैनीताल हाईकोर्ट एक फ़ैसले के बाद से दहशत, ख़ौफ़ और बेचैनी में जी रहा है। बेचैनी और निराशा की स्थिति ऐसी है कि बच्चे से लेकर बूढ़े और मर्दों से लेकर औरतें तक सभी की चिंता एक सी बन गयी है, जीवन बचाने के लक्ष्य सबके समान हो गए हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि ऐसी हालत में एकाध परिवार नहीं हैं, बल्कि पूरी 50 हज़ार आबादी इस ख़ौफ़नाक मंज़र को एक साथ देख, सुन और महसूस कर रही है।

उजाड़े जाने वाले 50 हज़ार लोगों में 4 हज़ार से अधिक आबादी हिंदू समाज के लोगों की भी है। इंदिरा नगर में रह रहे गुलाब साहू सवाल करते हैं, ‘मैं पंचर की दुकान चलाकर मुश्किल से परिवार का गुज़ारा करता हूं। छोटे-छोटे बच्चे-बच्चियों को लेकर हम लोग कहां जाएंगे, क्या करेंगे।’