देशद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई रोक,नहीं दर्ज होंगे नए मामले

राष्ट्रीय
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नई दिल्ली, 11 मई (ए)। उच्चतम न्यायालय ने देशभर में राजद्रोह के मामलों में सभी कार्यवाहियों पर बुधवार को रोक लगा दी और केंद्र एवं राज्यों को निर्देश दिया कि जब तक सरकार का एक ‘‘ उचित मंच ’’ औपनिवेशिक युग के कानून पर फिर से गौर नहीं कर लेता, तब तक राजद्रोह के आरोप में कोई नई प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाए।

प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की एक पीठ ने कहा कि देश में नागरिक स्वतंत्रता के हितों और नागरिकों के हितों को संतुलित करने की जरूरत है।

केंद्र की चिंताओं पर गौर करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘ भारतीय दंड संहिता (भादंसं) की धारा 124ए (राजद्रोह) वर्तमान सामाजिक परिवेश के अनुरूप नहीं है’’ और इसके साथ ही उसने प्रावधान पर पुनर्विचार की अनुमति दी।

पीठ ने केंद्र और राज्यों को निर्देश दिया कि जब तक राजद्रोह कानून पर ‘‘पुनर्विचार’’ नहीं हो जाता, तब तक राजद्रोह का आरोप लगाते हुए कोई नई प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाए।

अदालत ने मामले को जुलाई के तीसरे सप्ताह के लिए सूचीबद्ध किया और कहा कि उसके सभी निर्देश तब तब लागू रहेंगे।

शीर्ष अदालत ने कहा कि कोई भी प्रभावित पक्ष संबंधित अदालतों से सम्पर्क करने के लिए स्वतंत्र है। साथ ही, अदालतों से अनुरोध किया जाता है कि वे वर्तमान आदेश को ध्यान में रखते हुए मामलों पर विचार करें।

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘ हम उम्मीद करते हैं कि जब तक कानून के उक्त प्रावधान पर फिर से विचार नहीं किया जाता है, तब तक केंद्र तथा राज्य नई प्राथमिकियां दर्ज करने, भादंसं की धारा 124ए के तहत कोई जांच करने या कोई दंडात्मक कार्रवाई करने से बचेंगे।’’

प्रधान न्यायाधीश ने आदेश में कहा, ‘‘ अटॉर्नी जनरल ने पिछली सुनवाई में राजद्रोह कानून के दुरुपयोग के कुछ स्पष्ट उदाहरण दिए थे, जैसे कि ‘‘हनुमान चालीसा’’ के पाठ के मामले में…इसलिए कानून पर पुनर्विचार होने तक, यह उचित होगा कि सरकारों द्वारा कानून के इस प्रावधान का उपयोग न किया जाए।’’

पुलिस अधीक्षक (एसपी) रैंक के अधिकारी को राजद्रोह के आरोप में दर्ज प्राथमिकियों की निगरानी करने की जिम्मेदारी देने के केंद्र के सुझाव पर पीठ सहमत नहीं हुई।

केंद्र ने यह भी कहा था कि राजद्रोह के आरोप में प्राथमिकी दर्ज करना बंद नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह प्रावधान एक संज्ञेय अपराध से संबंधित है और 1962 में एक संविधान पीठ ने इसे बरकरार रखा था।

केंद्र के सुझाव सुनने के बाद पीठ ने कुछ मिनट उसके सुझावों पर विचार किया। इसके बाद, केंद्र सरकार के रुख का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा कि भारत सरकार भी प्रथम दृष्टया उसके दंडात्मक प्रावधान संबंधी विचारों से सहमत है, जिसकी समीक्षा सक्षम मंच द्वारा की जा सकती है।

अदालत ने राजद्रोह के आरोपियों को दी गई राहत को भी बढ़ा दिया और कहा कि राजद्रोह के आरोप से संबंधित सभी लंबित मामले, अपील तथा कार्यवाही पर रोक रहेगी और अन्य अपराध यदि कोई हो तो उस पर निर्णय किया जा सकता है।

इससे पहले, केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को केंद्र के विचारों से अवगत कराया था और कानून पर रोक लगाने की याचिका का विरोध किया था।

केंद्र ने राजद्रोह के लंबित मामलों के संबंध में न्यायालय को सुझाव दिया कि इस प्रकार के मामलों में जमानत याचिकाओं पर शीघ्रता से सुनवाई की जा सकती है, क्योंकि सरकार हर मामले की गंभीरता से अवगत नहीं हैं और ये आतंकवाद, धन शोधन जैसे पहलुओं से जुड़े हो सकते हैं।

विधि अधिकारी ने कहा था, ‘‘ अंतत: लंबित मामले न्यायिक मंच के समक्ष हैं और हमें अदालतों पर भरोसा करने की जरूरत है। ’’

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को केंद्र से कहा था कि राजद्रोह के संबंध में औपनिवेशिक युग के कानून पर किसी उपयुक्त मंच द्वारा पुनर्विचार किए जाने तक नागरिकों के हितों की सुरक्षा के मुद्दे पर 24 घंटे के भीतर वह अपने विचार स्पष्ट करे।

शीर्ष अदालत राजद्रोह संबंधी कानून की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है।