नयी दिल्ली, छह नवंबर (ए) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को उस याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा, जिसमें जमानत से जुड़े एक आपराधिक कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। इस कानून के तहत, आरोपमुक्त किए गए व्यक्ति को भी जेल से रिहा होने से पहले जमानत बॉंड और मुचलका भरने की जरूरत होती है।.
दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 437ए के तहत आरोपमुक्त किए गए व्यक्ति को भी हिरासत से रिहा होने के लिए छह महीने की अवधि तक वैध जमानत बॉंड और मुचलका भरने की आवश्यकता होती है। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि यदि सरकार आरोपमुक्त किए जाने के फैसले के खिलाफ अपील करना चाहती है तो वह उपलब्ध हो।.प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने याचिका पर केंद्र और राज्यों को नोटिस जारी किया तथा इस मामले में अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से मदद करने को कहा।
अजय वर्मा नामक व्यक्ति ने सीआरपीसी की धारा 437ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक आदेश का हवाला देते हुए याचिका में कहा गया है अदालत ने कहा था कि जिस मामले में जमानत दी गई है, उसमें निजी मुचलका पर्याप्त होना चाहिए, लेकिन आरोपी या दोषी को जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता क्योंकि वह मुचलका नहीं भर सका।
याचिका में दलील दी गई है कि धारा 437ए में कुछ कमियां हैं क्योंकि ऐसे भी आरोपी हो सकते हैं जिनके पास पैसों की कमी हो।