चंडीगढ़: 13 जनवरी ( ए) पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने अपने समलैंगिक साथी के लिए बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर करने वाली एक महिला से यह साबित करने को कहा है कि वह उस समलैंगिक साथी की “सबसे अधिक करीबी दोस्त” है।
इसके साथ ही अदालत ने मामले की आगे की सुनवाई सोमवार के लिए स्थगित कर दी।याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि उसकी 19-वर्षीया समलैंगिक साथी को उसके माता-पिता ने बंदी बना लिया है। उसने अदालत से हस्तक्षेप की मांग की है।
न्यायमूर्ति पंकज जैन ने शुक्रवार को याचिका पर सुनवाई करते हुए पूछा कि याचिकाकर्ता ने कैसे माना कि कथित तौर पर बंदी बनायी गयी लड़की उसकी सर्वाधिक ‘करीबी’ दोस्त है, जो उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले की है।
याचिकाकर्ता के वकील ने याचिकाकर्ता की मां और अपनी बेटी की समलैंगिक साथी के बीच टेलीफोन पर हुई बातचीत की प्रतिलिपि का हवाला दिया।
आदेश के अनुसार, ‘‘यह पूछे जाने पर कि उक्त बातचीत के अलावा याचिकाकर्ता के पास यह प्रदर्शित करने के लिए क्या सामग्री है कि वह कथित तौर पर बंदी बनाकर रखी गयी युवती की सबसे करीबी दोस्त की भूमिका निभा सकती है, याचिकाकर्ता के वकील ने इसके जवाब के लिए समय मांगा।’’
न्यायालय ने कहा, ‘‘यह प्रश्न इस तथ्य के मद्देनजर महत्वपूर्ण हो गया है कि रिकॉर्ड पर दो आधार कार्ड हैं। एक में कथित बंदी युवती की जन्मतिथि 15 जून, 2007 दिखाई गई है, जबकि याचिकाकर्ता का दावा है कि उसकी साथी का जन्म 14 जून, 2004 को हुआ है।’’
एक अन्य पीठ की ओर से चार जनवरी को पारित आदेश में भी इसका संज्ञान लिया गया है।
इसके बाद न्यायमूर्ति जैन ने सुनवाई की अगली तारीख 15 जनवरी तय की।
इस मामले की सुनवाई पहले न्यायमूर्ति संदीप मोदगिल ने की थी और उस दौरान चंडीगढ़ में भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण के क्षेत्रीय कार्यालय को कथित बंदी बनाकर रखी गयी लड़की के नाम पर जारी आधार कार्ड का विवरण प्रदान करने का निर्देश दिया था।
एक आधार कार्ड याचिकाकर्ता द्वारा और दूसरा कथित ‘बंदी’ युवती के माता-पिता द्वारा प्रस्तुत किया गया, जिसके अनुसार जन्मतिथि अलग-अलग दर्ज है।