गजब: मप्र में आवारा कुत्तों की नसबंदी में 17 करोड़ रुपए हुये खर्च: मध्य प्रदेश सरकार

भोपाल मध्य प्रदेश
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भोपाल,17 मार्च (ए)। मध्य प्रदेश में अवारा कुत्तों की नसबंदी का मामला मंगलवार को विधानसभा में गूंजा. इस बात को लेकर बीजेपी विधायक यशपाल सिसोदिया ने सरकार से सवाल करते हुए कहा कि प्रदेश में आवारा कुत्तों का आतंक दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। इसको लेकर सरकार क्या रही है? इस पर नगरीय प्रशासन ने चौंकाने वाला जवाब दिया। जिसे सुनकर के सदन में बैठे सदस्य हैरान रह गए। नगरीय प्रशासन ने अपने सवाल का जवाब देते हुए कहा कि सरकार प्रदेश के 5 बड़े शहरों में पिछले पांच साल में आवारा कुत्तों की संख्या नियंत्रित करने के लिए नसबंदी पर 17 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है। इस पर सवाल उठाते हुए बीजेपी विधायक यशपाल सिंह सिसोदिया ने कहा कि सरकार द्वारा कुत्तों की नसबंदी की जिम्मेदारी एनजीओ को दी गई है. जो सवालों के घेरे में है। यशपाल सिसोदिया ने कहा कि इनमें दो एनजीओ हैदराबाद और दो एनजीओ भोपाल के हैं. लेकिन इसके बावजूद भी नसबंदी का अभियान कहीं चलता नजर नहीं आता है. ऐसे में करोड़ों रुपये खर्च होने पर सवाल उठ रहे हैं? इस पर सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए। विधायक यशपाल सिंह सिसोदिया ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा है कि इतने कम संसाधनों के बावजूद इतने आवारा कुत्तों की नसबंदी होना एक बड़ा सवाल है? मैंने प्रदेश के पांच बड़े महानगरों में 2015 से आवारा कुत्तों की नसबंदी की जानकारी मांगी थी. मुझे जवाब मिला है कि इन 5 वर्षों में ढाई लाख आवारा कुत्तों की नसबंदी की गई है। इन नसबंदियो के बदले उन NGO को 17 करोड़ की राशि दी गई है। व‍िधायक यशपाल ने कहा क‍ि ये एनजीओ कितने पारंगत थे, क्या साधन थे, कैसे यहां तक आए, किस तरह उनके काम का संचालन किया? महानगरों में यदि इतने कुत्तों की नसबंदी की गई है तो उनकी प्रमाणिकता किसने दी है? कुत्तों को पकड़ा, उनकी नसबंदी की और छोड़ दिया। क्या उन्हीं कुत्तों की दोबारा नसबंदी तो नहीं कर दी? अनेक सवाल उठ रहे हैं। मेरा सवाल जब विधानसभा में आया तो चर्चा भी हो रही है कि ढाई लाख कुत्ते, 17 करोड़, 5 महानगर? इसमें हैदराबाद की 2 एनजीओ थी, रीवा की 1 और देवास की एक एनजीओ थी। कुल मिलाकर 4 एनजीओ ने इतने बड़े काम को अंजाम कैसे दे दिया? एक एक शहर में औसत एक लाख की नसबंदी की गई है तो आप हिसाब लगा लीजिए। उनके संसाधन क्या है, कैसे काम किया, प्रमाणिकता क्या है? कितने पार्षदों या महापौरों से इनके काम की पुष्टि करवाई गई? 17 करोड़ की राशि ज्यादा होती है ये सरकार का नहीं जनता का पैसा है, जनता के पैसे का कितना सदुपयोग हुआ है इसके लिए प्रश्न था। ये 5 महानगर की जानकारी है पूरे प्रदेश की तो मांगी नहीं।