ऑनलाइन बाल यौन उत्पीड़न संगठित अपराध है, जिससे निपटने के लिए पूरे समाज के योगदान की जरूरत: विशेषज्ञ

राष्ट्रीय
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भोपाल, 14 जुलाई (ए) ऑनलाइन बाल यौन उत्पीड़न की समस्या से निपटने में मदद करने वाले विशेषज्ञों ने इसे एक संगठित अपराध करार देते हुए शुक्रवार को कहा कि इस अपराध के खिलाफ लड़ने के लिए पूरे समाज के योगदान की जरूरत है।.

मध्य प्रदेश में बच्चों के ऑनलाइन यौन शोषण के मामलों को देखते हुए ‘इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड’ (आईसीपीएफ) ने इससे निपटने के तरीकों को लेकर मध्य प्रदेश के महिला एवं बाल कल्याण विभाग के साथ शुक्रवार को भोपाल में एक परिचर्चा का आयोजन किया।.मध्य प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ऋषि कुमार शुक्ला ने कहा, ‘‘गांवों में इंटरनेट पहुंचने के साथ यौन उत्पीड़न के मामले भी तेजी से बढ़े हैं। ऑनलाइन बाल यौन उत्पीड़न का समाधान आसान नहीं है। इसके लिए पूरे समाज का योगदान चाहिए।’’

‘‘यह बहुत अच्छी बात है कि आईसीपीएफ राज्यों में इस मुद्दे को ले जा रहा है।’’

ऑनलाइन खतरों से बच्चों की सुरक्षा की दिशा में देश में इस तरह की साझा पहलों व कार्रवाइयों को बेहद महत्वपूर्ण और जरूरी बताते हुए आईसीपीएफ के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक ओ. पी. सिंह ने कहा, ‘‘ऑनलाइन बाल यौन उत्पीड़न तेजी से बढ़ रहा है और यह एक संगठित अपराध है। इसे आतंकवाद की तरह ही देखा जाना चाहिए।’’

उन्होंने कहा, ‘‘अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रों सहित अलग-अलग जगहों में बैठे लोग हमारे बच्चों का यौन उत्पीड़न करते हैं और इसमें बड़े पैमाने पर पैसों का लेन-देन होता है। इसे देखते हुए गुणवत्तापूर्ण और समयबद्ध जांच एवं अभियोजन महत्वपूर्ण है।’’

विचार विमर्श के दौरान यह बात सामने आई कि ‘बाल यौन उत्पीड़न सामग्री’ (सीसैम) के मामलों की तह में जाने के लिए जो सबसे बड़ी चुनौती है, वह है सीडी प्रारूप में मिले सोर्स डेटा को डिकोड करना।

भोपाल के पुलिस उपायुक्त विनीत कपूर ने कहा, ‘‘आम तौर पर ई-सीडी में सीसैम के 600 से 800 मामले होते हैं। हमारे पास इस सीडी से डेटा निकालने का कोई तकनीकी तंत्र नहीं है। इसे ‘मैन्युअल’ तरीके से करना पड़ता है जिससे जांच में देरी होती है और पीड़ित बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है, इसलिए मामलों की तेजी से जांच के लिए हमें खास किस्म के साफ्टवेयर की जरूरत है ताकि सोर्स डेटा की तह तक जाकर अपराधी की शिनाख्त की जा सके।’’

आईसीपीएफ द्वारा अप्रैल 2020 में जारी की गई एक रपट के अनुसार, देश के 100 शहरों में हर महीने बच्चों से जुड़ी अश्लील सामग्रियां या सीसैम को औसतन 50 लाख बार इंटरनेट पर खोजा जाता है। यह आंकड़ा सिर्फ सार्वजनिक वेब का है, जबकि डार्क वेब में यह संख्या इससे बहुत ज्यादा हो सकती है।

बच्चों के ऑनलाइन यौन उत्पीड़न के बढ़ते खतरे पर चिंता जताते हुए मध्य प्रदेश महिला एवं बाल विकास विभाग के निदेशक विशाल नाडकर्णी ने कहा, ‘‘ऐसे मामलों में बच्चों की मदद के लिए हमारे पास कड़े कानून, एजेंसियां और विशेषज्ञ हैं, लेकिन इन सबके बीच प्रमुख संरक्षक हमेशा परिवार ही होता है। इसे देखते हुए यह महत्वपूर्ण है कि हम जमीनी स्तर पर परिवारों के बीच जागरूकता पैदा करें, जिससे वे पहचान सकें कि क्या उनके बच्चे किसी तरह के ऑनलाइन यौन उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं?’