विपक्ष के एकजुट होने का कदम का स्वागत योग्य, लोकतंत्र में अक्सर सत्ता साझेदारी की जरूरत-अमर्त्य सेन

राष्ट्रीय
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बोलपुर (पश्चिम बंगाल), 17 जुलाई (ए) लोकतंत्र में अक्सर सत्ता साझेदारी की जरूरत का जिक्र करते हुए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने अगले साल होने वाले आम चुनावों के लिए एक संघीय मोर्चा बनाने के सिलसिले में गैर-भाजपा दलों के बीच जारी चर्चा का स्वागत किया है।.

अपनी हालिया भारत यात्रा के दौरान यहां अपने पैतृक आवास पर एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि केंद्र को मणिपुर में शांति स्थापित करने के लिए पुरजोर तरीके से हस्तक्षेप करना चाहिए।.सेन (89) ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि लोकतंत्र अक्सर सत्ता साझेदारी की मांग करता है, लेकिन अक्सर बहुमत, अल्पमत वाले दलों को वह ताकत हासिल नहीं करने देता और अल्पमत को एक संकटपूर्ण स्थिति में छोड़ देता है।’’

अर्थशास्त्री-दार्शनिक ने कहा, ‘‘मौजूदा स्थिति को देखते हुए विपक्षी दलों के लिए सत्ता संतुलित करने का एकमात्र तरीका कमजोर बने रहने के बजाय एक दूसरे के साथ खड़े रहना है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘(पिछले महीने) पटना में हुई (विपक्ष की) बैठक में जो कुछ हुआ, उससे कुछ ऐसा ही जाहिर होता है।’’

बेंगलुरु में सोमवार और मंगलवार को 26 विपक्षी दलों के नेताओं की बैठक होने वाली है। कांग्रेस, जनता दल (यूनाइटेड) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अलावा तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (द्रमुक), शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) जैसे बड़े विपक्षी दल बैठक में शामिल होंगे। इसमें, 2024 के लोकसभा चुनाव में एकजुट होकर लड़ने की रणनीति की रूपरेखा तैयार करने की उम्मीद है।

सेन ने मणिपुर में स्थिति पर कहा, ‘‘सिर्फ इस चीज की जरूरत है कि केंद्र सरकार न्यायसंगत, पुरजोर तरीके से हस्तक्षेप करे।’’

राज्य में तीन मई से हुई जातीय हिंसा में 150 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।

नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री ने कहा कि उन्होंने उम्मीद की थी कि प्रधानमंत्री (नरेन्द्र मोदी) मणिपुर के बारे में न्यायसंगत और संतुलित टिप्पणी करेंगे।

उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ अवमानना मामले के बारे में कहा कि उन्हें याद नहीं कि इस तरह के मामले में संसद के किसी सदस्य ने कभी गिरफ्तारी का सामना किया हो, या संसद के निचले सदन (लोकसभा) की सदस्यता गंवाई हो।

सेन ने कहा, ‘‘हमारा इस दिशा में बढ़ना भारत के लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण हो सकता है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘भारतीय संविधान बहुत सोच-विचार के बाद तैयार किया गया, जिसे गहन चर्चा व विमर्श के बाद संविधान सभा ने पारित किया। इस प्रक्रिया ने भारतीय राजव्यवस्था में विभिन्न पक्षों को एक आम सहमति तक पहुंचने से पहले अपने विचार प्रकट करने का अवसर दिया था।’’

सेन ने कहा कि समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के जरिये जो कुछ करने की कोशिश की जा रही है और इसके संभावित नकारात्मक परिणामों को लेकर वह चिंतित हैं।