शीर्ष अदालत को यह मानदंड बनाना चाहिए कि उसका कब रुख किया जाए: सिब्बल

राष्ट्रीय
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नयी दिल्ली: तीन फरवरी (ए) राज्यसभा सदस्य एवं वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने शनिवार को कहा कि उच्चतम न्यायालय को झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा गिरफ्तारी के मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार करने से पहले मामले के गुणदोषों को सुनना चाहिए था।

सिब्बल ने इसके साथ ही अदालत से इसको लेकर मानदंड तय करने का आग्रह भी किया कि लोगों को उसका रुख कब करना चाहिए।सिब्बल ने आरोप लगाया कि सोरेन को इसलिए निशाना बनाया जा रहा है, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाला केंद्र ‘चाहता है कि कोई भी विपक्षी मुख्यमंत्री अपने पद पर बना ना रहे’ और हर जगह केवल ‘डबल इंजन सरकार’ हो।

उच्चतम न्यायालय ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को झटका देते हुए धनशोधन मामले में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा उनकी गिरफ्तारी को लेकर हस्तक्षेप करने से शुक्रवार को इनकार कर दिया और उन्हें उच्च न्यायालय का रुख करने को कहा।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति एम.एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) नेता सोरेन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल और अभिषेक सिंघवी से राहत के लिए उच्च न्यायालय जाने को कहा।

सिब्बल ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में फैसले के बारे में कहा, ‘‘हमें अदालत द्वारा यह बताया जाना चाहिए कि हमें किस मामले में यहां (शीर्ष अदालत) आना चाहिए और किस मामले में नहीं। हमें नहीं पता कि उच्चतम न्यायालय हमारी याचिका सुनेगा या नहीं, लेकिन हम इतिहास के बारे में जानते हैं।’’

उन्होंने दलील दी कि अनुच्छेद 32 नागरिकों को मौलिक अधिकार भी देता है। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा कई मामलों पर विचार किया गया है और अनुच्छेद के तहत राहत प्रदान की गई है।

संविधान का अनुच्छेद 32 प्रत्येक नागरिक को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित किये जाने की स्थिति में उच्चतम न्यायालय से संवैधानिक राहत लेने का अधिकार देता है।

सिब्बल ने कहा कि शीर्ष अदालत को एक ऐसी प्रणाली या नीति बनानी चाहिए, जिसके तहत लोगों को पता हो कि उसके पास कब जाना है और कब नहीं।

राज्यसभा सदस्य ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि भारत के इतिहास में शायद ही ऐसा कोई उदाहरण होगा जब एक मौजूदा मुख्यमंत्री को गिरफ्तार किया गया हो और इस पर भी अनुच्छेद 32 के तहत सुनवाई नहीं हुई। उच्चतम न्यायालय ने (कम से कम) हमारी बात सुनी होती और फिर सुनने के बाद, कहा होता, ‘हम हस्तक्षेप नहीं करना चाहते’, लेकिन हमें अपना पक्ष रखने का मौका भी नहीं दिया गया।’’सिब्बल ने दावा किया कि सरकार राज्यों में कोई विपक्ष या उसका मुख्यमंत्री नहीं चाहती। उन्होंने आरोप लगाया, ”वे (दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद) केजरीवाल के खिलाफ भी ऐसा करेंगे। वे केवल ‘डबल इंजन’ वाली सरकार चाहते हैं, विपक्ष की कोई सरकार नहीं।”सिब्बल ने दावा किया, ‘‘अब, होगा यह कि हिरासत में रहते हुए हेमंत सोरेन पर 10 और मामले थोपे जाएंगे। ये सभी मामले गढ़े हुए हैं, ताकि वह जेल से बाहर न आएं और उन्हें (भाजपा) 2024 (लोकसभा) में लाभ मिले।’’

उन्होंने कहा कि यह एक आदिवासी के साथ किया जा रहा है जिसे ”मनगढ़ंत आरोपों” में गिरफ्तार किया गया है। सिब्बल ने सवाल किया, ‘‘यदि उच्चतम न्यायालय इस मामले को नहीं सुनेगा तो हम कहां जाएंगे?’’ उन्होंने सवाल किया कि देश में क्या हो रहा है और किस तरह की राजनीति हो रही है।

उन्होंने कहा, ‘‘आप (केंद्र) यह घोषणा क्यों नहीं करते कि हम सभी विपक्षी मुख्यमंत्रियों को हटा देंगे और अपनी सरकार बनाएंगे।’’

शीर्ष अदालत के समक्ष अपनी याचिका में, सोरेन ने ईडी पर केंद्र द्वारा ‘सुनियोजित साजिश’ के तहत उन्हें गिरफ्तार करने का आरोप लगाया था। उन्हें अपनी गिरफ्तारी की आशंका के कारण झारखंड के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। कुछ ही महीनों में लोकसभा चुनाव होने हैं।

झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) नेता हेमंत सोरेन ने शीर्ष अदालत के समक्ष अपनी याचिका में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) पर उन्हें “सुनियोजित साजिश” के तहत गिरफ्तार करने का आरोप लगाया था। उन्होंने याचिका में कहा था कि अब से कुछ महीने बाद होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले केंद्र के निर्देश पर यह कार्रवाई की गई।

शीर्ष अदालत के समक्ष दायर याचिका में सोरेन ने उनकी गिरफ्तारी को अनुचित, मनमाना और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन घोषित करने का आग्रह किया था।

सोरेन को 31 जनवरी को भूखंड के “अवैध” कब्जे और “भूमि माफिया” के साथ कथित संबंध से जुड़े धनशोधन मामले में गिरफ्तार किया गया था।