न्यायालय ने जुबैर की अंतरिम जमानत अवधि बढ़ाई

राष्ट्रीय
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नयी दिल्ली, 12 जुलाई (ए) उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में कथित रूप से धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर के खिलाफ दर्ज एक मामले में उनकी अंतरिम जमानत अगले आदेश तक बढ़ा दी है।

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति ए.एस. बोपन्ना की एक पीठ को बताया कि वे सीतापुर में दर्ज प्राथमिकी खारिज करने को लेकर मोहम्मद जुबैर की ओर से दायर याचिका के खिलाफ एक हलफनामा दाखिल करना चाहते हैं।

राजू ने कहा कि जुबैर को मामले में जमानत दी जा चुकी है, हलफनामा दाखिल करने के वास्ते समय मांगने के अनुरोध पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

जुबैर की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा कि उनके मुवक्किल को अवकाशकालीन पीठ ने पहले ही मंगलवार तक अंतरिम जमानत दे दी है और वह इसके खिलाफ राज्य सरकार द्वारा दाखिल किए जाने वाले हलफनामे पर भी अपना जवाब दाखिल करना चाहेंगे।

इसके बाद, पीठ ने पत्रकार जुबैर की याचिका को अंतिम सुनवाई के वास्ते सात सितंबर के लिए सूचीबद्ध किया और उत्तर प्रदेश सरकार से चार सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने को कहा।

पीठ ने कहा कि जुबैर की ओर से अगर कोई प्रत्युत्तर दाखिल किया जाना है, तो वह उन चार सप्ताह के बाद दो सप्ताह के भीतर उसे दाखिल करें।

शीर्ष अदालत द्वारा जुबैर को दी गई राहत का फिलहाल कोई असर नहीं होगा क्योंकि वह एक अन्य मामले में दिल्ली की एक अदालत के आदेश के मुताबिक न्यायिक हिरासत में हैं।

वहीं, दिल्ली की एक अदालत मंगलवार को ‘ऑल्ट न्यूज’ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर की जमानत याचिका पर 14 जुलाई को सुनवाई करने पर सहमत हुई।

मामला जुबैर के 2018 में किए एक ‘‘आपत्तिजनक ट्वीट’’ से जुड़ा है । उन पर आरोप है कि अपनी पोस्ट के जरिए उन्होंने एक हिंदू देवता का अपमान किया।

दिल्ली पुलिस ने 27 जून को जुबैर को एक ट्वीट के जरिए धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में गिरफ्तार किया था।

दिल्ली पुलिस ने जुबैर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश) और 201 (सबूत नष्ट करना) और विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम की धारा 35 के नए प्रावधान लागू किए हैं।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक हिंदू देवता के खिलाफ 2018 में पोस्ट किए गए एक कथित आपत्तिजनक ट्वीट से संबंधित एक मामले में जुबैर की पुलिस रिमांड की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर दिल्ली पुलिस से एक जुलाई को जवाब मांगा। मामला 27 जुलाई को हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।

न्यायालय की अवकाशकालीन पीठ ने आठ जुलाई को उत्तर प्रदेश के सीतापुर में दर्ज मामले में जुबैर को पांच दिन की अंतरिम जमानत दे दी थी।

न्यायालय ने जुबैर के ट्विटर पर कुछ भी पोस्ट करने से रोक लगा दी थी और कहा था कि वह इलेक्ट्रॉनिक या अन्य किसी भी साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ नहीं करेंगे।

सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया था कि उसका अंतरिम जमानत का आदेश सीतापुर में दर्ज प्राथमिकी के संदर्भ में है और उसका दिल्ली में पत्रकार के खिलाफ दर्ज एक अलग मामले से कोई सरोकार नहीं है।

हिंदू शेर सेना की सीतापुर जिला इकाई के अध्यक्ष भगवान शरण द्वारा जुबैर के खिलाफ उत्तर प्रदेश में की गई शिकायत के आधार पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 295 ए (धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य करना) और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

शरण ने जुबैर के एक ट्वीट को लेकर शिकायत दर्ज कराई थी जिसमें ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक ने कथित तौर पर तीन हिंदूवादी संतों – यति नरसिंहानंद सरस्वती, बजरंग मुनि और आनंद स्वरूप- को “घृणा फैलाने वाला” करार दिया था।

जुबैर ने शीर्ष अदालत से जमानत का अनुरोध करते हुए अपनी याचिका में कहा है, “अपराधियों के साथ-साथ घृणा अपराधों की निगरानी और विरोध करने वालों के खिलाफ घृणा अपराध के मामलों में प्राथमिकी दर्ज करने के लिए यह पुलिस की एक नई रणनीति है।”

उन्होंने आरोप लगाया कि यह रणनीति समाज में धर्मनिरपेक्ष व्यक्तियों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को “दबाने” की है जो सांप्रदायिक तत्वों के खिलाफ खड़े होते हैं।

उन्होंने उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में कथित रूप से धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोप में उनके खिलाफ दर्ज एक मामले में प्राथमिकी रद्द करने और जमानत की मांग की है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश में उनकी जान को खतरा है।