परिवार, संपत्ति के संबंध में जीवनसाथी के झूठे बयान को आधार बनाकर शादी से छुटकारा नहीं पा सकते : अदालत

राष्ट्रीय
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नयी दिल्ली, 21 सितंबर (ए) दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक प्रेम विवाह को रद्द करने से इनकार करते हुए कहा कि जीवनसाथी के परिवार या संपत्ति के संबंध में फर्जी/झूठे बयान देकर शादी रचाए जाने को आधार बनाकर विवाह से ‘छुटकारा’ नहीं पाया जा सकता। .

विवाह को रद्द कराने के लिए अदालत का रुख करने वाले पति ने आरोप लगाया है कि उसकी पत्नी ने विवाह से पहले सौन्दर्य प्रसाधन के क्षेत्र में काम करने और उसकी संपत्ति पर साथ में व्यवसाय शुरू करने का झूठा वादा किया था।.पति ने धोखाधड़ी के आधार पर हिंदू विवाह अधिनियम (एचएमए) के तहत अपनी शादी को रद्द करने का अनुरोध किया है और दावा किया है कि उसकी पत्नी बाद में ‘‘फरार’’ हो गई थी। याचिका में पति ने कहा है कि वह शादी से पहले अपनी पत्नी से मिली झूठी जानकारी के बहकावे में आ गया था।

न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने पति के दावों को खारिज कर दिया और कहा कि शादी रद्द करने के लिए ‘धोखाधड़ी’ विवाह के लिए मूल आधार पर जुड़े ठोस तथ्यों को जानबूझकर छिपाए जाने का मामला होना चाहिए।

अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में, कथित अभ्यावेदन न तो विवाह समारोह की प्रकृति से संबंधित है और न हीं इससे दोनों के बीच का वैवाहिक संबंध प्रभावित होता है।

पीठ ने कहा, ‘‘यह देखना महत्वपूर्ण है कि अपीलकर्ता (पति) के अनुसार, वे एक-दूसरे को जानते थे और उन्होंने प्रेम विवाह किया था, प्रतिवादी द्वारा उसके पास व्यवसाय स्थापित करने के लिए पर्याप्त साधन होने के बारे में किसी भी प्रतिनिधित्व के संबंध में यह नहीं कहा जा सकता है यह धोखाधड़ी या भौतिक तथ्य को छिपाने की श्रेणी में आएगी, जिसके आधार पर अपीलकर्ता को शादी रद्द करने की डिक्री (फैसला) मिल जायेगी।’’

अदालत ने कहा, ‘‘शादी से सिर्फ यह दिखाकर छुटकारा नहीं पाया जा सकता है कि याचिकाकर्ता को परिवार की संपत्ति, जाति, धर्म, उम्र या प्रतिवादी के चरित्र से संबंधित झूठी सूचना देकर विवाह करने के लिए प्रेरित किया गया था।’’