मेडिकल परीक्षाओं में कई अभ्यर्थी कदाचार का सहारा लेते हैं, जिससे ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ की याद आती है: अदालत

राष्ट्रीय
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मुंबई, 17 नवंबर (ए) बंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ ने उस व्यक्ति को राहत देने से इनकार कर दिया, जिसे नीट परीक्षा में बैठने की इसलिए अनुमति नहीं दी गई क्योंकि उसके पास आवश्यक दस्तावेज नहीं थे।.

अदालत ने कहा कि कई अभ्यर्थी मेडिकल परीक्षाओं में कदाचार का सहारा लेते हैं और यह “मुन्नाभाई एमबीबीएस” फिल्म की याद दिलाता है।.न्यायमूर्ति आर वी घुगे और न्यायमूर्ति वाई जी खोबरागड़े की खंडपीठ ने 31 अक्टूबर के अपने फैसले में 49 वर्षीय चिकित्सक श्यामसुंदर पाटिल द्वारा दायर याचिका खारिज कर दी, जिसमें राष्ट्रीय परीक्षा बोर्ड को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया था कि वह उनके लिए सुपर स्पेशलिटी 2023 परीक्षा के लिए राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (नीट) आयोजित करे।

पाटिल को सितंबर में हैदराबाद में परीक्षा केंद्र में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी गई थी क्योंकि उनके पास मेडिकल काउंसिल द्वारा जारी स्थायी पंजीकरण प्रमाणपत्र की प्रति भौतिक रूप में नहीं थी।

पाटिल ने दावा किया कि उनके फोन पर इसकी एक प्रति थी लेकिन चूंकि परीक्षा केंद्र में मोबाइल फोन प्रतिबंधित था, इसलिए उन्हें प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई। हालांकि, पीठ ने कहा कि प्राधिकारियों को दोष नहीं दिया जा सकता।

अदालत ने कहा कि तकनीकी प्रगति और विकास के परिणामस्वरूप, ऐसे उदाहरण हैं जब छात्रों ने परीक्षाओं में कदाचार का सहारा लेने के लिए प्रवेशपत्र, पहचान पत्र गढ़ने, वेबसाइट हैक करने और परीक्षा हॉल में एयर-पॉड या इलेक्ट्रॉनिक ईयरबड ले जाने के लिए विभिन्न तरीकों/रणनीति का सहारा लिया है।

अदालत ने कहा, ‘‘हमें फिल्म ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ की याद आती है और यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ऐसे कई अभ्यर्थी हैं जो ऐसे तरीकों का सहारा लेते हैं। ऐसे उदाहरण हैं जब नीट-स्नातक और स्नातकोत्तर परीक्षा के परिणाम हैकर द्वारा हैक कर लिए गए, परिणाम गढ़े जाते हैं और फर्जी वेबसाइट पर परीक्षा परिणाम उच्च अंक के साथ प्रकाशित किए जाते हैं।’’

उसने कहा कि परीक्षा प्राधिकारी लगातार अभ्यर्थियों को सूचित करते हैं कि उन्हें परीक्षा हॉल में अपने साथ कौन से दस्तावेज ले जाने चाहिए और कौन से इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हैं जिन्हें उन्हें अपने साथ नहीं रखना चाहिए।

अदालत ने कहा कि इस व्यवस्था के पीछे का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि परीक्षा निष्पक्ष तरीके से आयोजित की जाए और किसी अभ्यर्थी की जगह कोई अन्य व्यक्ति परीक्षा में नहीं दें या अनुचित साधनों का सहारा लेने वाला अभ्यर्थी परीक्षा में नहीं बैठे।

पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता अपने पंजीकरण प्रमाण पत्र की प्रति नहीं ले गया था और उसने परीक्षा केंद्र पर इसे अपने मोबाइल फोन पर दिखाने पर भरोसा किया था और इसलिए लापरवाही के लिए अधिकारियों को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। अदालत ने कहा, ‘‘अगर याचिकाकर्ता ने मेडिकल पंजीकरण प्रमाण पत्र अपने पास रखा होता, तो उसके लिए परीक्षा हॉल में प्रवेश करने पर कोई प्रतिबंध नहीं था। इसलिए, केवल यह कहा जा सकता है कि याचिकाकर्ता को छात्रों के लिए स्थायी निर्देशों का सख्ती से पालन करने में विफल होने के लिए खुद को दोषी ठहराना चाहिए।’’

पीठ ने कहा कि प्राधिकारियों को केवल याचिकाकर्ता के लिए नये सिरे से परीक्षा आयोजित करने का निर्देश देना उचित नहीं होगा।