नयी दिल्ली,26 दिसंबर (ए)। उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है जिसमें उसके उस आदेश की समीक्षा की मांग की गई है जिसमें दिल्ली के उपराज्यपाल को 2015 के उस विधेयक पर सहमति देने या वापस करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया गया है जिसमें नर्सरी प्रवेश के लिए बच्चों की ‘स्क्रीनिंग’ पर प्रतिबंध लगाने का प्रस्ताव है।
एनजीओ ‘सोशल ज्यूरिस्ट’ द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका में दलील दी गई है कि हाल ही में उच्चतम न्यायालय के फैसलों के मद्देनजर यह याचिका महत्वपूर्ण हो गई है, जिनमें पंजाब और तमिलनाडु के राज्यपालों द्वारा राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित और पुन: पारित विधेयकों पर सहमति देने में देरी पर नाखुशी व्यक्त की गई है।याचिका में शीर्ष अदालत की इस टिप्पणी का हवाला दिया गया है कि राज्य के राज्यपालों को संविधान के अनुच्छेद 200 के प्रावधानों के अनुरूप कार्य करना चाहिए।
अनुच्छेद 200 में किसी राज्य की विधानसभा द्वारा पारित विधेयक को राज्यपाल की मंजूरी के लिए प्रस्तुत करने की प्रक्रिया का उल्लेख है। राज्यपाल या तो विधेयक पर सहमति दे सकते हैं, अनुमति रोक सकते हैं या विधेयक को भारत के राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रख सकते हैं। राज्यपाल विधेयक को विधानसभा के पुनर्विचार के लिए वापस भी कर सकते हैं।
शीर्ष अदालत ने 13 अक्टूबर को एनजीओ की याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि वह कानून बनाने के लिए निर्देश नहीं दे सकती।
उससे पहले, दिल्ली उच्च न्यायालय ने एनजीओ की जनहित याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि वह विधायी प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं कर सकता और उपराज्यपाल को दिल्ली स्कूल शिक्षा (संशोधन) विधेयक, 2015 को या तो मंजूर करने या वापस करने का निर्देश नहीं दे सकता।