लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए परामर्श प्रक्रिया के लिए दिशानिर्देश तय करेंगे: शीर्ष न्यायालय

राष्ट्रीय
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नयी दिल्ली: 22 मार्च (ए) उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि वह राज्यों में लोकायुक्तों की नियुक्ति के लिए मुख्यमंत्रियों, संबंधित उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों तथा नेता प्रतिपक्षों द्वारा अनुसरण की जाने वाली परामर्श प्रक्रिया से संबंधित दिशानिर्देश तय करेगा।

शीर्ष अदालत ने मध्य प्रदेश में लोकायुक्त की नियुक्ति को इस आधार पर चुनौती देने वाली याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया कि इस मामले में नेता प्रतिपक्ष (एलओपी) से परामर्श नहीं किया गया था।इस मुद्दे के देशव्यापी प्रभाव के मद्देनजर प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय पीठ ने कहा कि कुछ प्रक्रियागत तौर-तरीके तय करने होंगे।

पीठ ने कहा, ‘‘देशव्यापी प्रभाव को ध्यान में रखते हुए इस न्यायालय के लिए ऐसे मामलों में प्रभावी परामर्श के लिए दिशानिर्देश निर्धारित करना उचित होगा।’’

न्यायालय ने कहा कि इसका देशव्यापी प्रभाव है कि लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए राज्य द्वारा अपनाई जाने वाली प्रक्रिया क्या होनी चाहिए। इसने कहा, ‘‘यद्यपि कानून में यह प्रावधान है कि नेता प्रतिपक्ष भी एक सदस्य होगा, लेकिन फिर भी परामर्श प्रक्रिया के तौर-तरीके तय करने होंगे और आपको उस व्यक्ति (नेता प्रतिपक्ष) को कम से कम नामों पर विचार विमर्श के लिए एक अवसर देना ही होगा।’

शीर्ष अदालत नेता प्रतिपक्ष (एलओपी) कांग्रेस के उमंग सिंघार की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें राज्य में लोकायुक्त के पद पर न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) सत्येन्द्र कुमार सिंह की नियुक्ति को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि उनसे (एलओपी से) परामर्श नहीं किया गया था।

सिंघार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने इसे प्रक्रिया का ‘पूरी तरह से मजाक’ बताया, क्योंकि इसके लिए कोई परामर्श नहीं किया गया था।

राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श किया गया और पूरी फाइल नेता प्रतिपक्ष को भेज दी गई।

सिंघार ने मध्य प्रदेश लोकायुक्त एवं उप-लोकायुक्त अधिनियम, 1981 का हवाला देते हुए कहा था कि लोकायुक्त की नियुक्ति नेता प्रतिपक्ष और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सहमति से की जाती है।

उन्होंने कहा था, ‘इसलिए, संबंधित अधिनियम की धारा-तीन के अनुसार, नियुक्ति करने से पहले राज्य सरकार, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के बीच उचित परामर्श किया जाना आवश्यक था।

उन्होंने याचिका में कहा कि नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया में ‘मनमानी, बेईमानी और अवैधता’ की बू आती है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।