मुंबई, एक सितंबर (ए) बंबई उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम का दायरा केवल व्यक्ति विशेष के मूल राज्य तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कानून उसे देश में हर जगह संरक्षण प्रदान करता है।.
अदालत ने कहा कि यह अधिनियम केवल उस राज्य तक सीमित नहीं है, जहां किसी व्यक्ति को अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति समुदाय का सदस्य घोषित किया गया हो, अन्यथा इस कानून का उद्देश्य विफल हो जाएगा।.न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे, न्यायमूर्ति भारती डांगरे और न्यायमूर्ति एन जे जमादार की पूर्ण पीठ ने अपने फैसले में कहा कि यह अधिनियम अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) के खिलाफ अत्याचारों को रोकने के लिए बनाया गया था।
कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिनव चंद्रचूड़ ने दलील दी कि यदि व्यक्ति (पीड़ित) अपने मूल राज्य से दूसरे राज्य में चला गया है तो अत्याचार-निवारण अधिनियम के तहत अपराध लागू नहीं होगा, लेकिन महाधिवक्ता बीरेंद्र सर्राफ ने दलील का विरोध किया।
पीठ ने याचिकाकर्ताओं के मामले को स्वीकार करने से इनकार करते हुए कहा, ‘‘यह दलील कि जाति एक राज्य की सीमाओं तक ही सीमित होगी, एक मिथक होगी।’’