उच्चतम न्यायालय ने अधिवक्ता गौरी के न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने से रोकने से जुड़ी याचिका खारिज की

राष्ट्रीय
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नयी दिल्ली, सात फरवरी (ए) उच्चतम न्यायालय ने अधिवक्ता लक्ष्मण चंद्र विक्टोरिया गौरी को मद्रास उच्च न्यायालय की अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में शपथ लेने से रोकने की मांग करने वाली एक याचिका पर विचार करने से मंगलवार को इनकार कर दिया। साथ ही, कहा कि नियुक्ति के लिए कॉलेजियम द्वारा उनके नाम की सिफारिश किये जाने से पहले ‘परामर्श लेने’ की प्रक्रिया हुई थी।.

शीर्ष न्यायालय ने कहा कि गौरी को अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया है और यदि वह इस शपथ के प्रति ईमानदार नहीं रहती हैं और इसके मुताबिक अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं करती हैं, तो उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम उस पर विचार करेगा।.न्यायालय ने इस बात का जिक्र किया कि ऐसे उदाहरण रहे हैं, जिनमें लोगों (अतिरिक्त न्यायाधीशों) को स्थायी न्यायाधीश नहीं बनाया गया है।

गौरी की नियुक्ति के खिलाफ दो याचिकाओं को शीर्ष न्यायालय द्वारा खारिज किये जाने से कुछ ही मिनट पहले, उन्हें मद्रास उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश टी राजा ने पूर्वाह्न 10 बजकर 48 मिनट पर अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में पद की शपथ दिलाई।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बी आर गवई की विशेष पीठ ने कहा, ‘‘हम रिट याचिका स्वीकार नहीं कर रहे हैं।’’ पीठ के सदस्य याचिका पर सुनवाई करने के लिए न्यायालय के निर्धारित समय से पांच मिनट पहले पूर्वाह्न 10 बजकर 25 मिनट पर पहुंचे।

अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में गौरी की नियुक्ति का मद्रास उच्च न्यायालय के वकीलों की एक याचिका सहित दो याचिकाओं के जरिये विरोध किया गया था।

याचिकाकर्ताओं की ओर से विषय में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन से पीठ ने कहा कि ऐसे मामले रहे हैं, जिनमें राजनीतिक पृष्ठभूमि के लोगों ने उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश के रूप में शपथ ली है।

पीठ ने कहा, ‘‘आपने 2018 आदि के कुछ कथनों को रिकार्ड में रखा है। हमने इसे देखा है। इन सभी को कॉलेजियम के समक्ष रखना चाहिए था।’’

शीर्ष न्यायालय ने कहा कि जब कॉलेजियम निर्णय करता है, तब वह सलाहकार न्यायाधीशों का विचार भी प्राप्त करता है, जो किसी उच्च न्यायालय से होते हैं और याचिकाकर्ता यह नहीं मान सकते कि वे न्यायाधीश इन सभी चीजों से अवगत नहीं थे।

पीठ ने करीब 25 मिनट तक चली सुनवाई के दौरान कहा, ‘‘यदि अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया व्यक्ति शपथ के प्रति ईमानदार नहीं रहता है और यदि यह पाया जाता है कि उन्होंने शपथ के अनुरूप अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं किया है तो क्या कॉलेजियम उस पर विचार करने की शक्ति नहीं रखता है? ऐसे उदाहरण रहे हैं, जिनमें इस तरह के लोगों को स्थायी नहीं किया गया है।’’

पीठ ने रामचंद्रन से कहा कि पात्रता और उपयुक्तता में अंतर है। न्यायालय ने कहा कि जहां तक उपयुक्तता की बात है, यहां तक कि शीर्ष न्यायालय के फैसलों के मुताबिक, अदालतों को आगे नहीं बढ़ना चाहिए, अन्यथा नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया व्यर्थ हो जाएगी।

वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि वह पात्रता पर दलील दे रहे हैं और चूंकि निर्णय लेने की प्रक्रिया प्रभावित हुई क्योंकि आवश्यक सूचना कॉलेजियम के समक्ष नहीं रखी गई होगी।

उन्होंने दलील दी, ‘‘इस व्यक्ति ने सार्वजनिक रूप से कहे गये अपने कथनों से खुद को शपथ लेने के लिए अक्षम बताया था और यह पात्रता को सीधे तौर पर प्रभावित करता है।’’

रामचंद्रन ने कहा कि यह उस मानसिकता का संकेत देता है जो संविधान के आदर्शों के अनुरूप नहीं है।

रामचंद्रन ने कहा कि दो हालिया मामले हैं, जिनमें सोशल मीडिया पर किये गये पोस्ट न्यायाधीश के रूप में उम्मीदवारों की नियुक्ति के लिए सरकार की आपत्ति के आधार रहे हैं और कॉलेजियम को एक बार इस पर गौर करना चाहिए था।

न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘‘कॉलेजियम ने इसे नामंजूर कर दिया। कॉलेजियम ने कहा कि एक उम्मीदवार का व्यक्तिगत या राजनीतिक विचार उसके नाम की सिफारिश नहीं करने के लिए आधार नहीं हो सकता।’’

उन्होंने कहा, ‘‘एक तथ्य यह है कि यहां से आने से पहले, मेरी भी राजनीतिक पृष्ठभूमि थी और मैं पिछले 20 वर्षों से एक न्यायाधीश हूं।’’

पीठ ने कहा कि ऐसा नहीं है कि कॉलेजियम इस बात से अवगत नहीं होगा, जो याचिकाकर्ताओं ने कही है।

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को गौरी की मद्रास उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर सात फरवरी को सुनवाई करने का फैसला किया था। शीर्ष अदालत के फैसले के ठीक पहले केंद्र ने न्यायाधीश के रूप में गौरी की नियुक्ति को अधिसूचित किया था।

याचिकाकर्ता वकीलों-अन्ना मैथ्यू, सुधा रामलिंगम और डी नागसैला ने अपनी याचिका में गौरी द्वारा मुसलमानों और ईसाइयों के खिलाफ की गई कथित घृणास्पद टिप्पणियों का उल्लेख किया था। भा.