सुप्रीम कोर्ट ने कहा-कृषि कानून पर गठित कमेटी पर सवाल उठाना ठीक नहीं, ट्रैक्टर रैली पर हस्तक्षेप से इनकार

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नई दिल्ली, 20 जनवरी (ए)।उच्चतम न्यायालय ने नये कृषि कानूनों पर गतिरोध खत्म करने के लिए गठित की गई समिति के सदस्यों पर कुछ किसान संगठनों द्वारा आक्षेप लगाए जाने को लेकर बुधवार को नाराजगी जाहिर की। साथ ही, शीर्ष न्यायालय ने यह भी कहा कि उसने समिति को फैसला सुनाने का कोई अधिकार नहीं दिया है, बल्कि यह शिकायतें सुनेगी तथा सिर्फ रिपोर्ट देगी।

उल्लेखनीय है कि शीर्ष न्यायालय ने 12 जनवरी को नये कृषि कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी थी तथा केंद्र और दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों के बीच गतिरोध खत्म करने के सिलसिले में सिफारिशें करने के लिए चार सदस्यीय एक समिति गठित की थी।

इस बीच, राष्ट्रीय राजधानी में गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रदर्शनकारी किसानों की प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली को रोकने के लिए एक न्यायिक आदेश पाने की दिल्ली पुलिस की उम्मीदों पर पानी फिर गया। दरअसल, शीर्ष न्यायालय ने केंद्र को (इस संबंध में दायर) याचिका वापस लेने का निर्देश देते हुए कहा कि यह ‘‘पुलिस का विषय’’ है और ऐसा मुद्दा नहीं है कि जिस पर न्यायालय को आदेश जारी करना पड़े।

प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) एस ए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने राजस्थान के किसान संगठन किसान महापंचायत की एक अलग याचिका पर नोटिस जारी किया और अटार्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल का जवाब मांगा। याचिका के जरिए शीर्ष न्यायालय द्वारा नियुक्त चार सदस्यीय समिति के शेष तीन सदस्यों को हटाने और समिति से खुद को अलग कर लेने वाले भूपिंदर सिंह मान की जगह किसी अन्य को नियुक्त करने का अनुरोध किया गया है।

मान, भारतीय किसान यूनियन (मान) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।

पीठ ने समिति के सदस्यों के बारे में एक वकील की दलील पर कहा, ‘‘आप बेवहज आक्षेप लगा रहे हैं। क्या अन्य संदर्भ में विचार प्रकट करने वाले लोगों को समिति से बाहर कर दिया जाए?’’

दरअसल, वकील ने यह दलील दी कि समिति के सदस्यों के बारे में राय नये कृषि कानून के समर्थन में उनके (सदस्यों के) विचारों के बारे में मीडिया में खबरों के आधार पर बनी है।

पीठ ने कहा, ‘‘हर किसी के अपने विचार हैं। यहां तक कि न्यायाधीशों के भी अपने-अपने विचार हैं। यह एक संस्कृति बन गई है। जिसे आप नहीं चाहते, उनका गलत चित्रण करना नियम बन गया है। हमने समिति को फैसला सुनाने का कोई अधिकार नहीं दिया है।’’

पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम भी