रूस-यूक्रेन युद्ध के 50 दिन पूरे, जानें कितना हुआ नुकसान

अंतरराष्ट्रीय
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कीव-मास्को, 14 अप्रैल (ए)। रूस-यूक्रेन युद्ध को आज 50 दिन हो गए हैं। इन 50 दिनों में यूक्रेन ने बदहाली के करीब पहुंच गया है । विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के अनुसार युद्धग्रस्त यूक्रेन की अर्थव्यवस्था चौपट होने के करीब है। यूक्रेन की अर्थव्यवस्था इस साल 45 फीसदी तक सिकुड़ सकती है। वहीं कीव स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स (केएसई) की रिपोर्ट के अनुसार यूक्रेन के आधारभूत ढांचे को करीब 80.4 अरब डॉलर की क्षति हुई है। बीते एक सप्ताह में आधारभूत ढांचे को अकेले 12.2 अरब डॉलर का नुकसान हुआ है। युद्ध से यूक्रेन को 600 अरब डॉलर से अधिक का नुकसान का अनुमान है।
रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ वर्ष 2000 से 2011 के बीच वित्तमंत्री रहे एलेक्सी कुदरिन का अनुमान है कि युद्ध के दंश से रूस की अर्थव्यवस्था भी 2022 में दस फीसदी से अधिक गिर सकती है। 1991 में सोवियत संघ के गिरने के बाद ये सबसे बड़ी गिरावट होगी। रूसी उद्योगपतियों पर लगे प्रतिबंधों के कारण स्थिति और बिगड़ने की संभावना है।
यूक्रेनी वित्त मंत्रालय के अनुसार कुछ हद तक खंडहर में तब्दील हो चुके यूक्रेन में रूसी सेना ने 23 हजार किलोमीटर की सड़क ध्वस्त कर दी है। 865 शिक्षण संस्थान, 145 फैक्ट्रियां, 54 प्रशासनिक भवन, 277 ब्रिज, 10 मिलिट्री एयरफिल्ड, आठ एयरपोर्ट और दो बंदरगाह तबाह हो चुके हैं। इसके अलावा 74 धार्मिक स्थल और 62 सांस्कृति भवन जमींदोज हो चुके हैं।
यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार युद्ध के 42 दिनों में यूक्रेन के दो तिहाई बच्चे अपना घर छोड़ चुके हैं। वहीं अबतक 142 बच्चों की मौत हो चुकी है। यूनिसेफ के इमरजेंसी प्रोग्राम के निदेशक मैनुअल फॉनटेन का कहना है कि यूक्रेन में बच्चों की आबादी करीब 75 लाख है। इसमें से 48 लाख बच्चों का घर और स्कूल पूरी तरह से छूट चुका है।
रिपोर्ट के अनुसार 28 लाख बच्चे अभी भी यूक्रेन में जहां तहां फंसे हैं जबिक 20 लाख बच्चों ने पड़ोसी मुल्कों में शरण ले रखी है। वहीं 32 लाख बच्चे रूसी बमबारी के बीच अभी भी अपने घरों में कैद हैं। युद्ध क्षेत्र में घरों में कैद बच्चों के लिए सबसे बड़ी मुश्किल भोजना की व्यवस्था न हो पाना है। सबसे खराब स्थिति कीव, मारियुपोल और दोनेत्सक में है।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार युद्ध शुरू होने के बाद जान बचाकर भागने वाली पांच में से एक महिला या लड़की को यौन हिंसा का सामना करना पड़ा है। महिलाओं और लड़कियों के साथ बीच रास्ते में या शरणार्थी कैंपों में हैवानियत हुई। बुचा और मारियुपोल में महिलाओं से ज्यादती के मामले सामने आए हैं। युद्ध के कारण दूसरों पर निर्भर रहने वाले लोगों में से 54 फीसदी महिलाएं हैं।