उच्चतम न्यायालय ने ईवीएम में हेरफेर के संदेह को किया खारिज; इसे सुरक्षित करार दिया

राष्ट्रीय
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नयी दिल्ली: 26 अप्रैल (ए) इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में हेरफेर के संदेह को ‘‘बेबुनियाद’’ करार देते हुए उच्चतम न्यायालय ने मतपत्रों से मतदान कराए जाने का निर्देश देने के अनुरोध को शुक्रवार को खारिज कर दिया और कहा कि ‘ईवीएम’ ‘‘सुरक्षित’’ है तथा इसने मतदान केंद्रों पर कब्जा एवं फर्जी मतदान होने पर विराम लगा दिया।

हालांकि, शीर्ष अदालत ने चुनावों में दूसरा और तीसरा स्थान हासिल करने वाले असफल उम्मीदवारों को प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में पांच प्रतिशत ईवीएम के ‘माइक्रोकंट्रोलर चिप’ के सत्यापन की मांग करने की अनुमति दे दी। हालांकि, इसके लिए इन उम्मीदवारों को आयोग को एक लिखित आवेदन देना होगा तथा इसके लिए शुल्क अदा करना होगा।

लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के मतदान के बीच, न्यायालय ने ‘ईवीएम’ के जरिये डाले गए वोट का ‘वोटर वेरिफाएबल पेपर ऑडिट ट्रेल’ (वीवीपैट) के साथ शत-प्रतिशत मिलान कराने संबंधी याचिकाएं खारिज कर दीं। न्यायालय ने कहा कि तंत्र के किसी भी पहलू पर ‘‘आंख मूंदकर अविश्वास करना’’ अवांछित संशय पैदा कर सकता है।

न्यायालय ने कहा कि मतदाताओं को ‘वीवीपैट’ पर्चियां देना समस्या पैदा करेगा और यह अव्यावहारिक है तथा यह इसका दुरुपयोग किए जाने एवं विवादों को बढ़ावा देगा।

इसने निर्देश दिया कि एक मई से, चिह्न ‘लोड’ करने की यूनिट को एक कंटेनर में सील व सुरक्षित किया जाए और चुनाव नतीजों की घोषणा के कम से कम 45 दिनों की अवधि तक ‘स्ट्रॉंग रूम’ में ईवीएम के साथ रखा जाए।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने मतपत्रों से चुनाव कराने की प्रणाली का फिर से उपयोग करने का अनुरोध करने वाली जनहित याचिकाएं खारिज कर दीं और कहा कि बगैर सबूत के बार-बार तथा लगातार संदेह जताए जाने से अविश्वास पैदा करने के नुकसानदेह प्रभाव पड़ सकते हैं।

पीठ ने कहा, ‘‘मतदान प्रणाली सरल, सुरक्षा, जवाबदेही और सटीकता के सिद्धांतों के अनुरूप होनी चाहिए। एक अत्यधिक जटिल प्रणाली संदेह और अनिश्चितता पैदा कर सकती है, जिससे हेरफेर की गुंजाइश आसान हो जाती है।’’

न्यायालय ने कहा, ‘‘हमारा मानना है, ईवीएम सुरक्षित और उपयोगकर्ताओं के अनुकूल है। मतदाता, उम्मीदवार और उनके प्रतिनिधि तथा निर्वाचन आयोग के अधिकारी ईवीएम प्रणाली की मूलभूत विशेषताओं से अवगत हैं।’’

इसने कहा कि ईवीएम को हैक करने या इसमें हेरफेर करने या नतीजों को बदलने की संभावना नहीं है।

न्यायालय ने कहा, ‘‘इसलिए, ईवीएम में बार-बार एक खास उम्मीदवार को वोट दर्ज करने के लिए इसमें हेरफेर किए जा सकने का संदेह खारिज किया जाना चाहिए।’’

पीठ की ओर से 38 पन्नों का फैसला लिखते हुए न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि वीवीपैट को शामिल कर एक स्वतंत्र वोट सत्यापन प्रणाली, जो मतदाताओं को यह जानने में सक्षम बनाती है कि उनके वोट सही ढंग से दर्ज किए गए हैं या नहीं, वोट सत्यापन के सिद्धांत को मजबूत करता है जिससे चुनावी प्रक्रिया की समग्र जवाबदेही बढ़ जाती है।

वहीं, न्यायमूर्ति दत्ता ने जनहित याचिकाएं दायर करने वालों को फटकार लगाते हुए कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि भारत की प्रगति को बदनाम करने, कमतर करने और कमजोर करने का एक समन्वित प्रयास किया जा रहा है और ऐसे किसी भी प्रयास को नाकाम किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में, कुछ निहित स्वार्थी समूहों द्वारा राष्ट्र की उपलब्धियों को कमतर करने का प्रयास किए जाने की प्रवृत्ति तेजी से विकसित हुई है।

न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा कि न्यायालय मौजूदा आम चुनाव में पूरी प्रक्रिया को सवालों के घेरे में लाने की अनुमति नहीं दे सकता।

उन्होंने कहा, ‘‘प्रणालियों या संस्थाओं का मूल्यांकन करते समय संतुलित दृष्टिकोण रखना जरूरी है, जबकि तंत्र के किसी भी पहलू पर आंख मूंदकर अविश्वास करना अवांछित संशयवाद को उत्पन्न कर सकता है।’’

शीर्ष अदालत ने विभिन्न याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया। इन याचिकाओं में गैर सरकारी संगठन ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ (एडीआर) की एक याचिका भी शामिल थी जिसमें मतपत्रों से चुनाव कराने की पुरानी प्रणाली फिर से अपनाने के लिए निर्देश जारी करने का अनुरोध किया गया था।

चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता और विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए, निर्वाचन संचालन नियम,1961 में 2013 में संशोधन किया गया था, ताकि वीवीपैट मशीनों का इस्तेमाल किया जा सके। नगालैंड में नोकसेन विधानसभा सीट पर उपचुनाव (2013) में इनका पहली बार इस्तेमाल किया गया था।

देश में सात चरणों में हो रहे लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण में, शुक्रवार को 13 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के 88 निर्वाचन क्षेत्रों