जब खुद को राष्ट्रपति नियुक्त किए जाने की याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचा शख्स,फिर अदालत ने जो किया—

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नई दिल्ली, 21 अक्टूबर (ए)। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को भारत के राष्ट्रपति के खिलाफ अपमानजनक आरोप लगाने के मामले में एक स्व-प्रशंसित पर्यावरणविद् की याचिका को तुच्छ कहते हुए इसलिए खारिज कर दिया। याचिकाकर्ता ने भारत के राष्ट्रपति पद के लिए निर्विवाद उम्मीदवार बनने और 2004 से वेतन और भत्ते दिए जाने की मांग की, क्योंकि उसे नामांकन दाखिल करने की अनुमति नहीं दी गई थी। न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ ने किशोर जगन्नाथ सावंत की जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसने व्यक्तिगत रूप से तर्क दिया था। अदालत ने कहा कि उन्हें इस तरह की याचिका दायर नहीं करनी चाहिए और इसके बजाय जीवन में उस लक्ष्य पर आगे बढ़ना चाहिए जिसमें वह माहिर हैं।
अदालत ने कहा कि याचिका तुच्छ और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। सर्वोच्च संवैधानिक कार्यालय के खिलाफ लगाए गए आरोप जिम्मेदारी की भावना के बिना हैं और रिकॉर्ड से हटा दिए गए हैं। पीठ ने शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री को भविष्य में इसी विषय पर सावंत की याचिका पर विचार नहीं करने का निर्देश दिया। याचिका में कहा गया था कि याचिकाकर्ता को 2022 के राष्ट्रपति चुनाव के लिए निर्विवाद उम्मीदवार के रूप में माना जाए, भारत के राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त करने का निर्देश दिया जाए और 2004 से राष्ट्रपति को देय वेतन और भत्तों का भुगतान किया जाए। 
सुनवाई के दौरान पीठ ने सावंत से पूछा कि उन्होंने भारत के राष्ट्रपति के खिलाफ किस तरह के अपमानजनक आरोप लगाए हैं और वह राष्ट्रपति को दिए जाने वाले वेतन और भत्ते भी चाहते हैं। सावंत ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि उनका मामला संविधान के मूल लोकाचार को फिर से परिभाषित करेगा और अदालत से उनकी याचिका पर विचार करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा किया कि देश का नागरिक होने के नाते उन्हें सरकारी नीतियों और प्रक्रियाओं से लड़ने का पूरा अधिकार है। पीठ ने कहा, हां, आपको सरकारी नीतियों और प्रक्रियाओं को चुनौती देने का अधिकार है, लेकिन आपको तुच्छ याचिकाएं दायर करने और अदालत का कीमती समय बर्बाद करने का कोई अधिकार नहीं है। आप सड़क पर बाहर खड़े होकर भाषण दे सकते हैं, लेकिन आप इस तरह की तुच्छ याचिकाएं दायर करके अदालत में नहीं आ सकते और सार्वजनिक समय पर कब्जा नहीं कर सकते। 
सावंत ने अदालत से दो मिनट के लिए उनकी बात सुनने का अनुरोध किया और दलील दी कि वह एक पर्यावरणविद् हैं जो 20 वर्षों से इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं और पिछले तीन राष्ट्रपति चुनावों में उन्हें नामांकन दाखिल करने की अनुमति नहीं दी गई थी। उन्होंने कहा कि एक नागरिक के रूप में मुझे कम से कम नामांकन दाखिल करने का पूरा अधिकार है। एक नागरिक के रूप में मुझे सरकारी नीतियों के खिलाफ लड़ने का पूरा अधिकार है। पीठ ने कहा कि अदालत का कर्तव्य है कि वह ऐसे मामलों का फैसला करे और उसकी याचिका खारिज करने का आदेश पारित किया।