सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी; ससुराल पक्ष के लोगों को फंसाने के लिए दहेज उत्पीड़न विरोधी कानून का हो रहा बेजा इस्तेमाल

राष्ट्रीय
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नई दिल्ली,09 फरवरी (ए)। आए दिन सामने आ रहे फर्जी दहेज प्रताड़ना के मामलों पर अब सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जाहिर की है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि ससुराल पक्ष के लोगों को फंसाने के लिए दहेज प्रताड़ना कानून का बेजा इस्तेमाल किया जा रहा है। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ आरोपों के आधार पर रिश्तेदारों के खिलाफ कार्रवाई करना इस कानून के साथ-साथ कानूनी प्रक्रिया का भी दुरुपयोग है। दहेज प्रताड़ना का आरोप किसी पति और उसके रिश्तेदारों के लिए कभी न मिनटे वाले बदनामी के दाग की तरह है। इस प्रवृत्ति का समर्थन नहीं किया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दहेज उत्पीड़न के आरोपों पर पति के दूर और पास के रिश्तेदारों को मुकदमा झेलने और जेल में सड़ने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। कानूनन इसका विरोध होना जरूरी है। जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि सारे रिश्तेदारों को फंसाने और सबक सिखाने के लिए लगाए जाने वाले आरोपों के मामले में ऐसी स्थिति आती है। ये बाद में ऐसे मुकदमे साबित होते हैं, जिनमें आरोपी तो अंततः बरी हो जाते हैं, लेकिन उन पर गंभीर दाग जिंदगी भर लगे रहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी बिहार के पूर्णिया के मोहम्मद इकराम की याचिका पर की। इकराम ने परिवार के सदस्यों ने पटना हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। इस अपील को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया था। इस मामले में लड़के के परिवार पर दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज कराया गया था। आरोप है कि कार की मांग ना पूरी होने पर आरोपियों ने गर्भपात कराने की धमकी दी। इस FIR को रद्द करने से हाईकोर्ट ने इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक अप्रैल, 2019 की FIR में पता चलता है कि सभी आरोपियों पर सामान्य तरह के आरोप थे जैसे, मानसिक रूप से परेशान करना और गर्भावस्था को समाप्त करने की धमकी देना। इसमें कहा जा सकता है कि यह छोटी-छोटी झड़पों या कहासुनी के कारण लगाए गए हों. पीठ ने यह भी कहा कि अदालत पहले भी कई मामलों में पति के रिश्तेदारों को फंसाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त कर चुकी है। वैवाहिक विवाद के दौरान सबको लपटेने वाले आरोपों को अनियंत्रित छोड़ दिया गया तो कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।