उच्चतम न्यायालय ने अपनी रजिस्ट्री से वादियों की जाति या धर्म का उल्लेख नहीं करने को कहा

राष्ट्रीय
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नयी दिल्ली: सात फरवरी (ए) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को अपने रजिस्ट्री अधिकारियों से अदालत के उस हालिया आदेश का पालन करने को कहा जिसमें निर्देश दिया गया था कि वादियों की जाति या धर्म का उल्लेख करने की प्रथा को बंद किया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति हिमा कोहली की अध्यक्षता वाली पीठ ने 10 जनवरी को शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री और अन्य सभी अदालतों को अदालती मामलों में वादियों की जाति या धर्म का उल्लेख करने की प्रथा को तुरंत बंद करने का निर्देश दिया।बुधवार को जारी एक परिपत्र में उच्चतम न्यायालय ने कहा, ‘‘अदालत के निर्देशों के अनुपालन में रजिस्ट्री के सभी संबंधित अधिकारियों, कर्मचारियों को आदेश का पालन करने का निर्देश दिया जाता है कि अब से अदालत के समक्ष दायर याचिका, कार्यवाही के पक्षों की अर्जियों में जाति या धर्म का उल्लेख नहीं किया जाएगा, भले ही निचली अदालतों के समक्ष ऐसा कोई विवरण प्रस्तुत किया गया हो।’’

शीर्ष अदालत ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (एससीएओआरए) जैसे बार निकायों के सदस्यों से निर्देशों का ध्यान रखने को कहा।

पीठ ने 10 जनवरी को सभी उच्च न्यायालयों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि उच्च न्यायालयों या उनके अधिकार क्षेत्र के तहत अधीनस्थ अदालतों के समक्ष दायर किसी भी याचिका में पक्षकारों, अर्जियों में किसी वादी की जाति या धर्म का उल्लेख न हो।

पीठ में न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह भी शामिल थे। पीठ ने कहा, ‘‘हमें इस अदालत या निचली अदालतों के समक्ष किसी भी वादी की जाति या धर्म का उल्लेख करने का कोई कारण नहीं दिखता है। इस तरह की प्रथा को त्याग दिया जाना चाहिए और इसे तुरंत बंद किया जाना चाहिए।’’

शीर्ष अदालत ने राजस्थान की एक परिवार अदालत के समक्ष लंबित वैवाहिक विवाद में स्थानांतरण याचिका की अनुमति देते हुए यह आदेश पारित किया था। शीर्ष अदालत ने इस बात पर हैरानी जताई थी कि पक्षों की अर्जियों में पति और पत्नी दोनों की जाति का उल्लेख किया गया था।

याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को सूचित किया था कि यदि निचली अदालतों के समक्ष दायर पक्षों की अर्जियों में किसी भी तरह से बदलाव किया जाता है, तो रजिस्ट्री आपत्ति करती है। याचिकाकर्ता ने कहा कि मौजूदा मामले में निचली अदालत में दोनों पक्षों की जाति का उल्लेख पूर्व में किया गया था, ऐसे में उनके पास स्थानांतरण याचिका में उनकी जाति का उल्लेख करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।

शीर्ष अदालत ने तब निर्देश दिया था कि उसके आदेश को तत्काल अनुपालन के लिए बार के सदस्यों के साथ-साथ रजिस्ट्री के ध्यान में लाया जाएगा।